212 2212 2212
कौन-सा आँगन जहाँ पर ग़म नहीं
आस का आँचल मगर कुछ कम नहीं
रूठकर आँसू बहाना छोड़ दो
दर्द का बेइन्तहा आलम नहीं
कौन-सा आँगन जहाँ पर ग़म नहीं
आस का आँचल मगर कुछ कम नहीं
रूठकर आँसू बहाना छोड़ दो
दर्द का बेइन्तहा आलम नहीं
क्या कहें ये ज़ख्म ताज़ा क्यों रहे
पालते नासूर फिर मरहम नहीं
मौज दरिया की समन्दर से मिली
उम्र भर की वह रवानी कम नहीं
राख में क्यों भूनते हो तल्खियाँ
आज जलवागर अँगारे कम नहीं
मौज दरिया की समन्दर से मिली
उम्र भर की वह रवानी कम नहीं
राख में क्यों भूनते हो तल्खियाँ
आज जलवागर अँगारे कम नहीं
कब मुकम्मल कुछ मिला इस दौड़ में
मत समझना अब किसी में दम नहीं
चाँदनी का नूर भी दिलक़श बहुत
बीत जाए दोपहर कुछ ग़म नहीं
मत समझना अब किसी में दम नहीं
चाँदनी का नूर भी दिलक़श बहुत
बीत जाए दोपहर कुछ ग़म नहीं
तुम मिले तो आज फिर अच्छा लगा
लोग तो मिलते रहे महरम नहीं
कैलाश नीहारिका
लोग तो मिलते रहे महरम नहीं
कैलाश नीहारिका
सुन्दर
ReplyDeleteआभार जोशी जी.
ReplyDelete