Monday, 11 December 2017

कौन साथी है

  212  212  1222

आज बेग़र्ज़ कौन साथी है
धर्म की बात ही लजाती है

नफरतों के उजाड़ जंगल में
प्रेम की पौध सूख जाती है

हौसलों में बहुत दरारें हैं          
ईंट-दर-ईंट थरथराती है
 
दूर तट से उछल गिरी बूँदें 
कब लहर लौटकर बुलाती है

रात बीते अजीब सपनों में 
फिर हक़ीकत सुबह जगाती है

बाँचती रह गईं थकी आँखें 
अश्क़ में पीर कसमसाती है 

          कैलाश नीहारिका 

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