212 212 1222
आज बेग़र्ज़ कौन साथी है
धर्म की बात ही लजाती है
नफरतों के उजाड़ जंगल में
प्रेम की पौध सूख जाती है
हौसलों में बहुत दरारें हैं
ईंट-दर-ईंट थरथराती है
आज बेग़र्ज़ कौन साथी है
धर्म की बात ही लजाती है
नफरतों के उजाड़ जंगल में
प्रेम की पौध सूख जाती है
हौसलों में बहुत दरारें हैं
ईंट-दर-ईंट थरथराती है
दूर तट से उछल गिरी बूँदें
कब लहर लौटकर बुलाती है
रात बीते अजीब सपनों में
कब लहर लौटकर बुलाती है
रात बीते अजीब सपनों में
फिर हक़ीकत सुबह जगाती है
बाँचती रह गईं थकी आँखें
बाँचती रह गईं थकी आँखें
अश्क़ में पीर कसमसाती है
कैलाश नीहारिका
कैलाश नीहारिका
बहुत सुन्दर।
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