जाने कब कौन हो निशाने पे
किसको राहत मिली ज़माने से
वे चुप थे देर तक बिना सोचे
जिसने सोचा कहा ज़माने से
बनके अहसास साथ जो रहता
उसको मुद्दत लगे भुलाने में
हमने चाहा कहीं ख़ुशी बोएं
अरसा बीता शिला हटाने में
अरसा बीता शिला हटाने में
जिसने पाई खुशी गले मिलकर
उसकी चाहत दिखी निशाने पे
उसकी चाहत दिखी निशाने पे
जिसके दिन-रात जगमगाते थे
उसका आसन हिला हिलाने से
तेरा होना जिसे समझ आया
कब वो तन्हा रहा ज़माने में
कैलाश नीहारिका
कब वो तन्हा रहा ज़माने में
तेरा होना जिसे समझ आया
ReplyDeleteकब वो तन्हा रहा ज़माने में
वाह।
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बधाई
शुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी. स्नेह बनाए रखें !
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति खरे जी.आगे भी आपकी प्रतिक्रियाओं कि प्रतीक्षा रहेगी.