Monday 21 December 2020

कविता का अपनापा

कविता लिखना 

जूता गाँठना नहीं है कि 

जिसकी आवश्यकता और उपयोगिता सामने हो .

कविता लिखना उच्छवास छोड़ने से पहले 

उसे लय देना है.

उच्छवास में भले ही कुछ भी सहेजा गया हो ---

मूलभूत आवश्यकताओं से लेकर 

अनदिखी प्रबल एषणाओं तक !

पर कविता में रची-बसी वह लय 

किसी प्रज्ञा की गहराई से निकल     

पाठक की प्रज्ञा को गले लगाती है  

भरपूर अपनापे से !

                         - कैलाश नीहारिका

Monday 7 September 2020

जिल्द पर मत जाना

मुझे समझाया गुरु ने 
जिल्द पर मत जाना 
वह बताती नहीं मजमून भीतर का 
उन्हें मत सुनना जो कहें --
' हम तो वे हैं जो 
मजमून भाँप लेते हैं लिफाफा देखकर '

जिल्द पर ही नहीं 
पृष्ठों पर भी मत जाना 
और मत जाना 
पृष्ठों पर लिखी पंक्तियों के मात्र पठन-पाठन पर
पर्त दर पर्त वहाँ अर्थों के पट खुलते हैं 
जो तय करते हैं राह । 

मैं अचम्भित रही 
जिल्द नहीं, पृष्ठ नहीं 
पृष्ठों पर सजी पंक्तियाँ भी नहीं 
यह कैसा शब्द-भेदन है, जो कहीं और है !

मुस्कुराते हैं गुरु --
जो पुस्तक से शुरू होकर 
ख़त्म हो जाए पुस्तक पर 
वह जिज्ञासा नहीं । 

कहा कुछ और भी 
कि ये विज्ञान को गाते जुगनू 
रोशनी के महल तक जाते नहीं 
बहुत भ्रामक हैं वे 
चाँद-सूरज की बातें करते बहुधा
उन्हीं राहों को काट देते हैं
जो रोशन हैं सदा । 

                        कैलाश नीहारिका 


Sunday 6 September 2020

पुलक भरी आस


समझने लगी हूँ अब
जो उड़ गया वह पक्षी था
जो बंद रहा मुट्ठी में वह दाना। 
 
चढ़ते-चढ़ते जो लौटने लगी
वह धूप थी
जो दर्ज हो गया कहीं, दिनांक था।

जो साथ रहा 'मैं ' था
जो अलग हुआ ' तुम '
जो सध न सका, 'हम ' था 
वह लापता था जो अंतरलीन था।

बस निकल लूँ इस अँधेरे से
कन्दरा के पार है प्रकाश
तन गई हैं मुट्ठियाँ
मुट्ठियों में धड़कती है
पुलक भरी आस !

Monday 4 May 2020

ओह, कोरोना



भेड़िया आएगा•• भेड़िया आएगा
हा हा ••हम हँसते रहे
भेड़िया आया भेड़िया आया •••
हमारी गली तो क्या
हमारे मोहल्ले तक भी नहीं आएगा वह ।
 
मृत्यु के पंजे देखने तक
हमें उसके आने का विश्वास न था 
न ही इतनी समझ कि
भेड़िया अपने आने की सूचना नहीं देता
वह बस •• आता है। 


                           -- कैलाश नीहारिका

दण्डधारी खेमेबाज़

दंडधारी खेमेबाज़ 
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सुनो नव कवि 
इस मायावी हाट-बाज़ार में 
चौकस रहकर  
चौतरफ़ उपस्थित अनदिखे
विशाल ख़रीदार हाथों का
संज्ञान लेना।

वे दंडधारी खेमेबाज़ 
कैसे भी शब्दजाल से
इंद्रधनुषी प्रलोभनों से 
या शुद्ध आक्रामकता से कूट-पीटकर
जकड़ ही लेंगे अपने प्रभा केंद्र में 
खींच लेंगे नये बन्धक को
अपने खेमे में ।

सुनो प्रिय नवांकुर
मत झेलना
उनके तहखानेदार 
खेमों की दुर्गन्ध को।
दूर रहना उनसे   
ताज़ा हवाओं का आह्वान करना
नित्य-नवीन का आशीष ओढ़े 
सींचते हुए स्वयं ही
हरा-भरा रखना
अपनी अनन्त संभावनाओं को।
 
देखना एक दिन
दुलारेगा तुम्हें अद्भुत स्पन्दन 
निर्विकल्प विस्मयकर  !
                
                        -- कैलाश नीहारिका