Sunday 7 January 2018

तत्पर हथेलियाँ


बात करते-करते
संग-सम्बन्धों के विमर्श पर  
अनमने-से मौन ओढ़ लेते हो
किसको ज्ञात नहीं कि 
बन्द मुट्ठियों में
आसक्तियों के कसे-सटे रेशे
सदा एक-से नहीं रहते ।

तत्पर हथेलियाँ
यूँ ही नहीं थाम लेतीं
आगे बढ़े हाथ को ।
मन की तहों में दबा रखे
अदिखे अबूझ रहस्य
ऐसे ही रेशमी फिसलन-से
औचक नहीं खुल जाते ।
दृष्टि स्वर स्पर्श में 
टेरती कशिश 
बेवजह नहीं होती।
 
जंगल में नाचने से पहले मोर
अकारण ही आकुल होकर 
नहीं जोहता
सहचर का अखुट्ट भरोसा ।

यात्रा कोई
बिना किसी पृष्ठभूमि के 
अधर से शुरू नहीं होती 
सोचो तो, ऐसा भी जटिल नहीं
पाँव और डगर के सम्बन्धों की टोह लेना।

                    कैलाश नीहारिका 




                             
      

Tuesday 2 January 2018

पीछे मुड़कर भी देखना



पायल, बिन्दी, कँगना से 
आगे निकल चुकी लड़की   
पीछे मुड़कर भी देखना
चीन्हना उस साम्राज्य को
जहाँ गृह-कारा में बंद कई ज़िन्दा अस्तित्व और
विवशता के रुदन में दब गए मनभावन गीत
अजगरी जकड़न की वेदना से त्रस्त हैं  !

पकड़ उंगली तुम्हारी   
कुछ दबे गीतों के सुर भी  
दूर तक साथ चल देंगे
जो अभी असमंजस में हैं
होंठों की देहरी के भीतर !

तुम देखना मुड़कर 
कि अवरुद्ध साँसों को कुछ साफ़ हवा मिल सके 
कि सुन्न पंखों में जागें स्पन्दन 
कि फैसलों के पीछे हों कई पुख़्ता कदम 
कि शोर की जगह संगीत ले !

दोहराऊँगी आह्वान कि 
बेगार मत ढोना     
किसी गन्तव्यहीन यात्रा की
बहुत-से पिंजरे हटाने हैं तुम्हें
जिनसे तुम मुक्त हो !
 
मैं मिलूँगी तुम्हें प्रतीक्षारत 
इसी मोड़ पर
हठी गान्धारी की आँखों पर से 
अनदिखी पट्टियाँ खोलते  
दुखती उँगलियों से !

                  कैलाश नीहारिका