Monday 4 May 2020

दण्डधारी खेमेबाज़

दंडधारी खेमेबाज़ 
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सुनो नव कवि 
इस मायावी हाट-बाज़ार में 
चौकस रहकर  
चौतरफ़ उपस्थित अनदिखे
विशाल ख़रीदार हाथों का
संज्ञान लेना।

वे दंडधारी खेमेबाज़ 
कैसे भी शब्दजाल से
इंद्रधनुषी प्रलोभनों से 
या शुद्ध आक्रामकता से कूट-पीटकर
जकड़ ही लेंगे अपने प्रभा केंद्र में 
खींच लेंगे नये बन्धक को
अपने खेमे में ।

सुनो प्रिय नवांकुर
मत झेलना
उनके तहखानेदार 
खेमों की दुर्गन्ध को।
दूर रहना उनसे   
ताज़ा हवाओं का आह्वान करना
नित्य-नवीन का आशीष ओढ़े 
सींचते हुए स्वयं ही
हरा-भरा रखना
अपनी अनन्त संभावनाओं को।
 
देखना एक दिन
दुलारेगा तुम्हें अद्भुत स्पन्दन 
निर्विकल्प विस्मयकर  !
                
                        -- कैलाश नीहारिका

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