Friday, 29 December 2017

सुर्ख़ियों में दिखते हो

 
आज भी सुर्ख़ियों में दिखते हो
इश्तहारों भरे हो बिकते हो

बैठकों में सजाई जलधारा
बैठ दरिया किनारे लिखते हो

थोक में बिक रहे हैं शंख यहाँ
फूँकते हो कभी या डरते हो

आजकल फूल पौधे बिकते हैं 
 ख़ूब बगिया सँभाले खिलते हो
 
इश्क़ में साथ-भर रहना मुश्किल
 फुरसती  शौक कितने रखते हो

आदमी आदमी से दूर हुआ
 जान- पहचान का दम भरते हो            

बेगुनाही सिसकती सदमे में 
 किसलिए हाथ जोड़े दिखते हो      

            कैलाश नीहारिका 

7 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ख़ुशी की कविता या कुछ और?“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. लाजवाब...प्रणाम

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  3. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 3 जनवरी2018 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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  4. मुकम्मल गज़ल

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