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दरो-दीवार सब ढहा होता
कभी तो आसमां जिया होता
दरो-दीवार सब ढहा होता
कभी तो आसमां जिया होता
सँभल के यूँ नपा-तुला कहना
कभी कुछ बेसबब कहा होता
कहा हँसते हुए सरे-ख़ल्क़त
नज़र-भर रीझ के कहा होतादहकती आग की तपिश झेली
घुमड़ता-सा धुआँ सहा होता
नयन की ढाल से लुढ़कता-सा
लरजता अश्क़ ही बहा होता
लरजता अश्क़ ही बहा होता
अभी ख़ारिज सही फ़िदा होना
वह कभी मुंतज़िर रहा होता
छुपा ही वो रहा खुदाई में
कभी तो रूबरू रहा होता
कैलाश नीहारिका
छिपा ही वो रहा खुदाई में
ReplyDeleteकभी तो रूबरू रहा होता
बहुत खूब आदरणीया
shukriya dj !
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