Tuesday, 23 June 2015

किरदार हम रहे



          2222 1212 22 1212                                 

वहशत का दौर देखकर  बेज़ार हम रहे
पानी में छोड़ कश्तियाँ इस पार हम रहे
 
सतरंगे ख्वाब ज़हन में गुमनाम-से बसे
 किसके ये तीर-तरकश गुनहगार हम रहे
 
 ये शज़र सदाबहार इसका राज़ क्या कहें
  तन्हा-सी एक झील का किरदार हम रहे

  जाने  बेइख्तियार आँसू  किस तरह थमे
  दरिया बहुत  पुरजोश था लाचार हम रहे

  दीवानापन कि रिंदगी हम कब समझ सके
  पुरजश्न  लहरें  लेकिन  खबरदार  हम  रहे                  
                           

                                  कैलाश नीहारिका 

3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जीना सब को नहीं आता - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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