रोशनी तो सब जगह पहुँची नहीं
खोखले वादे ख़ुशी उपजी नहीं
किस तरह नग़में हवाओं के सुनें
सिर्फ़ तहख़ाने वहाँ खिड़की नहीं
अश्क़ ठहरे ही नहीं पलकों तले
रात तकिये से नमी फिसली नहीं
साथ उनका एक जादू-सा लगा
दूर होते ही ख़ुशी ठहरी नहीं
आहटों पर चौंक जाती जुस्तजू
नींद की परियाँ वहाँ उतरी नहीं
जलजलों की खूब चर्चा थी मगर
वह इमारत आज तक दरकी नहीं
कौन करता उन हवाओं से गिला
नींद की परियाँ वहाँ उतरी नहीं
जलजलों की खूब चर्चा थी मगर
वह इमारत आज तक दरकी नहीं
कौन करता उन हवाओं से गिला
खुशबुएँ जिनसे कभी सँभली नहीं
बहुत सुन्दर आदरणीया
ReplyDeleteधन्यवाद dear dj !
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