Tuesday, 9 June 2015

ख़ुशी सौंपी नहीं

       
रोशनी तो सब जगह पहुँची नहीं
 खोखले वादे ख़ुशी उपजी नहीं

किस तरह  नग़में  हवाओं के सुनें
सिर्फ़ तहख़ाने  वहाँ  खिड़की  नहीं

अश्क़ ठहरे ही नहीं  पलकों तले
रात तकिये से नमी फिसली नहीं

साथ उनका एक जादू-सा लगा
दूर  होते ही ख़ुशी ठहरी नहीं
 
आहटों पर चौंक जाती जुस्तजू
नींद की परियाँ वहाँ उतरी नहीं

जलजलों की खूब चर्चा थी मगर
वह इमारत आज तक दरकी नहीं

कौन करता उन हवाओं से गिला    
खुशबुएँ जिनसे कभी सँभली नहीं


 
                 

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