2122 2122 22 1222
शोख़ नज़रों की पनाहों में ग़म छुपे भी हैं
भँवर चौतरफ़ा हसरतों के अनदिखे ही हैं
भीड़ से हटके कहीं दिखते साथ साँझ ढले
दरमियां उनके कई किस्से अनकहे भी हैं
हौसलों की हर बुलन्दी भी आसरा चाहे
पुल बने हैं जो कहीं खम्भों पे उठे भी हैं
मुस्कराते हैं छुपाकर ज़ख्म अपने अक्सर
शाम ढलते बेसबब तन्हा सुबकते भी हैं
कौन गिनता है यहाँ लहरें शाम होने तक
रेत पर वादे लिखे उसने फिर पढ़े भी हैं
कैलाश नीहारिका
शोख़ नज़रों की पनाहों में ग़म छुपे भी हैं
भँवर चौतरफ़ा हसरतों के अनदिखे ही हैं
भीड़ से हटके कहीं दिखते साथ साँझ ढले
दरमियां उनके कई किस्से अनकहे भी हैं
हौसलों की हर बुलन्दी भी आसरा चाहे
पुल बने हैं जो कहीं खम्भों पे उठे भी हैं
मुस्कराते हैं छुपाकर ज़ख्म अपने अक्सर
शाम ढलते बेसबब तन्हा सुबकते भी हैं
कौन गिनता है यहाँ लहरें शाम होने तक
रेत पर वादे लिखे उसने फिर पढ़े भी हैं
कैलाश नीहारिका
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