Friday 21 April 2023

रंग आकाश के

भले ही कितने रंग रखे हैं
मेरे पिटारे में
जानती हूँ भली-भाँति
भर नहीं सकती रंग आकाश में
रच नहीं सकती इन्द्रधनुष
रोक नहीं सकती
लुप्त होते इन्द्रधनुष को !
 
पर, यह भी सच है कि 
रंग सकती हूँ अपनी चुनरी मनभावन रंग से
उस चुनरिया पर
काढ़ सकती हूँ इन्द्रधनुष
पक्के रंगों के धागों से !
 
मैंने जाना कि
मेरे हाथों में जादू है
इतना सब करने का अद्भुत कौशल 
धीरे-धीरे जान पाई
हाथों से ज़्यादा जादू
मेरी आँखों में है
जो देखती हैं कितना कुछ
देखे हुए को सौंप देती हैं मुझे
ज्यों का त्यों
रचती हूँ उस देखे हुए को फिर ज़हन में
देखती हूँ पुनः रचे हुए को
बंद आँखों से।
 
-- कैलाश नीहारिका

 

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