Sunday 26 February 2012

दूब पुरनम करें

दूब  होने  लगी  बदरंग  अब निखारें उसे
साथ मिल सींच लें पुरनम करें सँवारें उसे

चिमनियों-सी फुनगियाँ धूल औ धुएँ से ढकीं
लौट पाई नहीं बरसात  फिर गुहारें उसे

ज़हन में इक हरा जंगल अभी बचा है कहीं
मौन  सहमा  हुआ पंछी वहाँ,  दुलारें उसे

शब्द क्यों  तोप की मानिंद  दनदनाने लगे
थम गई जो  सुरीली टेर फिर  उभारें उसे

छीन के ले गया उस्ताद प्रेम का कायदा
फेंक देगा कहीं आखर चलो गुहारें उसे



     212 212 2212 12 212


                     कैलाश नीहारिका 

            ( युगस्पन्दन  में प्रकाशित )
                                                           
 
  

 

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