कोई बात करो
जो मरहम हो
अनदिखे ज़ख्मों के दौर में ।
कोई बात करो
जो आस किरण हो
अन्धे न्याय के दौर में !
कोई बात करो
जो थाम ले कसकर
निर्मम अलगाव के दौर में।
कोई बात करो
कि मिल बैठें
इस भाग-दौड़ के दौर में।
- कैलाश नीहारिका
कविता एक ऐसी उपज है जिसकी जड़ें गहरी हैं . कविता के शब्दों से ही अर्थ नहीं झरते,उसके शब्द जिस 'स्पेस' से आवरण युक्त होते हैं, वह 'स्पेस' भी कविता कहता है.कविता को समझने के लिए उसके 'स्पेस ' का मर्म समझना ज़रूरी है . मर्मज्ञ ही हो सकता है कविता का पाठक ! कविता एक दर्द है / हम जो हैं / उससे जुदा होने का दर्द / कविता है _ कैलाश नीहारिका
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