Wednesday 19 October 2022

पायदानों पर रुकी

 

पायदानों पर रुकी अटकी ग़ज़ल
शोख कंधों पर झुकी लटकी ग़ज़ल

तुम हवाले दे रहे हो खूब पर
आप अपनी बात से हटती ग़ज़ल

रोज़ सपने टालती-सी नींद है
जागने के पाठ को रटती  ग़ज़ल

कुन्द होकर मिट गईं जब तल्खियाँ
ज़िन्दगी की सान क्या चढ़ती ग़ज़ल

आज तक हासिल हुईं रुसवाइयाँ 
 किसलिए दिन रात यूँ खटती ग़ज़ल
                   
                    -- कैलाश नीहारिका

No comments:

Post a Comment