Thursday 23 June 2022

नदी का होना

 मैंने नदियाँ पार कीं

बिना जल को छुए

समझ आते-आते आई कि 

जो पार किये वे मात्र पुल थे 

नदी के होने की बस साक्षी रही।


फिर कभी पाया कि मिट गई नदी

पता चला वह नदी नहीं 

बरसाती जल का रास्ता था

बहुत बाद में जाना 

नदी बारहमासी होती है 

किसी हिमनद की आत्मजा।


अब तमाम नहरों-नालों 

कुओं झीलों तालाबों को देखते हुए

सूझते हैं मुझे ग्लेशियर .....

यूँ तो मैं वर्षा और ओस की भी साक्षी हूँ।


ठीक समझे हो 

मैं हिम के समान्तर सोच रही थी 

वाष्पीकरण को भी।


Monday 20 June 2022

बन्द खाली मुट्ठियाँ


इससे पहले कि
आँखों और ओठों से बाहर आते-आते
मोहक मुस्कान
किसी को विभोर कर 
अपना विस्तार कर सके  
वह झट चेहरे पर पसरी 
इर्द-गिर्द की रेखाओं में  
बिला जाती है।

मुस्कान के विलुप्त होने का रहस्य 
गहरा जुड़ा है बन्द मुट्ठियों से 
जो खाली हैं  
पर, भरी होने का भ्रम देती हैं ।
तोड़ ही दूँगी यह भ्रम 
खोलकर खाली मुट्ठियाँ 
तेरी ओर बढ़ने को
तुम्हें भींच सकने को !  

                        कैलाश नीहारिका