Monday 21 December 2020

कविता का अपनापा

कविता लिखना 

जूता गाँठना नहीं है कि 

जिसकी आवश्यकता और उपयोगिता सामने हो .

कविता लिखना उच्छवास छोड़ने से पहले 

उसे लय देना है.

उच्छवास में भले ही कुछ भी सहेजा गया हो ---

मूलभूत आवश्यकताओं से लेकर 

अनदिखी प्रबल एषणाओं तक !

पर कविता में रची-बसी वह लय 

किसी प्रज्ञा की गहराई से निकल     

पाठक की प्रज्ञा को गले लगाती है  

भरपूर अपनापे से !

                         - कैलाश नीहारिका