Friday 6 September 2019

तीर का सौन्दर्य

कभी जब
तीर के सौन्दर्य का
गान गाऊं इतरा कर
मुझे समझाना मत
प्रत्यंचा से  छूटते उस शस्त्र की बारीकियाँ
सरल अर्थ उसकी तीखी धार के
समझ ही जाऊँगी अपने-आप
सीना बिंध जाने पर !

                               कैलाश नीहारिका
                                 ' धारा को रोकते नहीं पहाड़ '  से
                                  

Thursday 23 May 2019

सींग-प्रेम


क्यों न हम पाल ले सींग
किसी भी तरकीब से
नित्य करें पुष्ट और पैना उन्हें
वही हैं अभी हमारी
धारदार अभिव्यक्ति और 
सृजन के उपकरण ।

 
क्या नहीं समझते हम
लोकतंत्र की वाणी से अपनी दूरी
जो दशकों तक फैली लगती
और संभव है कि
उस दूरी को
सदियों तक खींच ले जाए
हमारा सींग-प्रेम !

नफ़रत और उपेक्षा भरी लाल-लाल आँखों से
घूरते कभी ताकते
सुनते रहेंगे हम न्याय विमर्शों को
सत्ता के उन्माद में
सींग चमकाते हुए 
खोजते रहेंगे कोई पीठ
खुजलाने को
या कोई ओट
लार व शौच टपकाने को।

जब कभी संवाद की कुव्वत हो
तो बताना मुझे
वार्ता कैसे चलेगी
तुम्हारे सींग-प्रेम से  !                       

         -- कैलाश  नीहारिका



Friday 25 January 2019

छतरियाँ थामे

          212  22  122  212   221

छतरियां थामे चले वे माँगते बरसात
मैं चली शबनम सहेजे साथ में आकाश

धूप ने मुट्ठी भरी सौंपे शज़र को रंग
मंच पर कब तक सुनाती ज़िंदगी संवाद

खोजकर पाताल-भर रचते कहीं तो झील
राह में  अन्धा कुआँ किस तरह सीँचूँ आस            

क्यों तिज़ारत घोल देते चाहतों के संग   
रंग  कुदरत के सहेजूँ  और खेलूँ  फाग

वे परिन्दों को बुलाकर निरखते परवाज़
पर मुझे उनका चहकना सौंपता इक नाद

वह समन्दर या कि सहरा सिरजता हो रास
लहरियाँ बस प्रेम की जी को करें आबाद
       
 कैलाश नीहारिका