क्यों न हम पाल ले सींग
किसी भी तरकीब से
नित्य करें पुष्ट और पैना उन्हें
वही हैं अभी हमारी
धारदार अभिव्यक्ति और
सृजन के उपकरण ।
क्या नहीं समझते हम
लोकतंत्र की वाणी से अपनी दूरी
जो दशकों तक फैली लगती
और संभव है कि
उस दूरी को
सदियों तक खींच ले जाए
हमारा सींग-प्रेम !
नफ़रत और उपेक्षा भरी लाल-लाल आँखों से
घूरते कभी ताकते
सुनते रहेंगे हम न्याय विमर्शों को
सत्ता के उन्माद में
सींग चमकाते हुए
खोजते रहेंगे कोई पीठ
खुजलाने को
या कोई ओट
लार व शौच टपकाने को।
जब कभी संवाद की कुव्वत हो
तो बताना मुझे
वार्ता कैसे चलेगी
तुम्हारे सींग-प्रेम से !
-- कैलाश नीहारिका
लोकतंत्र की वाणी से अपनी दूरी
जो दशकों तक फैली लगती
और संभव है कि
उस दूरी को
सदियों तक खींच ले जाए
हमारा सींग-प्रेम !
नफ़रत और उपेक्षा भरी लाल-लाल आँखों से
घूरते कभी ताकते
सुनते रहेंगे हम न्याय विमर्शों को
सत्ता के उन्माद में
सींग चमकाते हुए
खोजते रहेंगे कोई पीठ
खुजलाने को
या कोई ओट
लार व शौच टपकाने को।
जब कभी संवाद की कुव्वत हो
तो बताना मुझे
वार्ता कैसे चलेगी
तुम्हारे सींग-प्रेम से !
-- कैलाश नीहारिका
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25 -05-2019) को "वक्त" (चर्चा अंक- 3346) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
धन्यवाद अनीता जी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
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