Sunday 24 July 2022

पेंच

 मैंने सदा चाहा 

तुम्हारा प्रेमपूर्ण होना 

जबकि मेरा प्रेमपूर्ण होना 

दशकों से छीज रहा है 

बस 

यहीं सारा पेंच अड़ा है ।

मैं का विसर्जन करते हुए 

मैं पुनर्नवा होने की 

कोशिश में हूँ। 

बूँद बूँद शब्द

शब्दों में 

कहाँ समाती है 

कविता !

 

झरते -झरते
निथर जाओगे
एक दिन ! 


हाशिये से 

ख़ारिज होंगे 

बेज़ुबान लोग

       - कैलाश नीहारिका