कविता एक ऐसी उपज है जिसकी जड़ें गहरी हैं . कविता के शब्दों से ही अर्थ नहीं झरते,उसके शब्द जिस 'स्पेस' से आवरण युक्त होते हैं, वह 'स्पेस' भी कविता कहता है.कविता को समझने के लिए उसके 'स्पेस ' का मर्म समझना ज़रूरी है . मर्मज्ञ ही हो सकता है कविता का पाठक ! कविता एक दर्द है / हम जो हैं / उससे जुदा होने का दर्द /
कविता है _
कैलाश नीहारिका
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२५-०७ -२०२२ ) को 'झूठी है पर सच दिखती है काया'(चर्चा-अंक ४५०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद जी.आपके ब्लॉग की प्रस्तुतियों के पीछे आपका श्रम झलकता है . अभिनन्दन . कैलाश नीहारिका
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआभार आपका .
Deleteजी उम्दा प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया .
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