कविता एक ऐसी उपज है जिसकी जड़ें गहरी हैं . कविता के शब्दों से ही अर्थ नहीं झरते,उसके शब्द जिस 'स्पेस' से आवरण युक्त होते हैं, वह 'स्पेस' भी कविता कहता है.कविता को समझने के लिए उसके 'स्पेस ' का मर्म समझना ज़रूरी है . मर्मज्ञ ही हो सकता है कविता का पाठक ! कविता एक दर्द है / हम जो हैं / उससे जुदा होने का दर्द /
कविता है _
कैलाश नीहारिका
दूसरे का " मैं " भी तो विसर्जित हो ।
ReplyDeleteदूसरे को सुधारने की चाहत निरर्थक है . अपना ' मैं ' विसर्जन करने का अर्थ आत्म सम्मान से रहित होना नहीं है .
Deleteधन्यवाद जी.आपके ब्लॉग की प्रस्तुतियों के पीछे आपका श्रम झलकता है . अभिनन्दन .
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