Sunday 24 July 2022

बूँद बूँद शब्द

शब्दों में 

कहाँ समाती है 

कविता !

 

झरते -झरते
निथर जाओगे
एक दिन ! 


हाशिये से 

ख़ारिज होंगे 

बेज़ुबान लोग

       - कैलाश नीहारिका 



 

 

 

6 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२५-०७ -२०२२ ) को 'झूठी है पर सच दिखती है काया'(चर्चा-अंक ४५०१) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. धन्यवाद जी.आपके ब्लॉग की प्रस्तुतियों के पीछे आपका श्रम झलकता है . अभिनन्दन . कैलाश नीहारिका

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  3. जी उम्दा प्रस्तुति ।

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