सूनी-सूनी रातें हैं खाली-से दिन
बिन मौसम के ही बरसे बादल रिमझिम
सबके हिस्से में कैसे आती होंगी
रोज़ सुनहरी किरणें या शबनम झिलमिल
बिन मौसम के ही बरसे बादल रिमझिम
सबके हिस्से में कैसे आती होंगी
रोज़ सुनहरी किरणें या शबनम झिलमिल
आज हुलस खोकर लौटा लगता है वह
रेशा-रेशा बिखरा आख़िर किसके बिन
गिनते-गिनते सब सुर सरगम भूल गए
थाप बिना जो गूँजा उसकी शिद्दत सुन
अपने हिस्से आई धूप बहुत फीकी
सुर्ख-भुने लम्हे सब मिट्टी में शामिल
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