Wednesday, 19 April 2023

शिकारी केवट

इस नये राजधर्म में
सुनो केवट
तुम भी शिकारी ठहरे
देखो तुम्हारे काँटे में मछलियाँ ही नहीं
मगरमच्छ भी आ फँसे हैं  !
भूल गए हैं वे अलमस्त
धूप में पसरना सुस्ताना।
 
कहो ओ मछेरे
शिकार को ठिकाने लगाने से पहले
किससे मिलना तय है ?
पूछती हूँ क्योंकि
तुम्हारी इसी भूमिका से
आगे का परिदृश्य निकलेगा।

                    कैलाश नीहारिका

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