Wednesday, 11 May 2011

बात कविता की


कविता एक दर्द है
हम जो हैं
उससे जुदा होने का दर्द  
कविता है !

कविता एक उत्सव है
हम जो हैं
उस तक पहुँच पाने का उत्सव
कविता है !

             कैलाश नीहारिका   

वापस


धरती की गोद से
मेघ का नाता
अज्ञात नहीं
बरसा तो फिर
लौटकर आया वहीँ

          -कैलाश नीहारिका 


स्पंदन

इक सुरीला गीत गाकर
उड़ गया 
खग ने देखा ही नहीं 
प्रकम्पित पत्तों को
स्पन्दित शाख को !

           -कैलाश नीहारिका 


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कविता और 'स्पेस'


कविता क्या है ? इसकी शास्त्रीय व्याख्याओं में न जाकर 'अनुभव ही प्रमाण ' के आधार पर कहूँगी
कि कविता एक ऐसी उपज है जिसकी जड़ें गहरी हैं । कविता के शब्दों से ही अर्थ नहीं झरते, उसके
शब्द जिस' स्पेस ' से आवरण युक्त होते हैं, वह 'स्पेस 'भी कविता कहता है । कविता को समझने के
 लिए उस 'स्पेस ' का मर्म समझना ज़रूरी है । मर्मज्ञ ही हो सकता है कविता का पाठक !
                                                                                                                  कैलाश नीहारिका


                                                                                                              

हिला गया मौसम


     2122 12 1222

सब्ज़   पत्ते  गिरा  गया  मौसम
क्या पहेली  बुझा  गया मौसम

राह  तकते   खड़े  रहे सपने
फिर मिलेंगे सुना गया  मौसम

आरजू थी सदा वफ़ा करते
जुस्तजू-भर सिखा गया मौसम

दर्द   बोये   गये   बहुत गहरे
फिर बरस के रुला गया मौसम

कब कहाँ कौन साथ छोड़ चले
पाठ विरही पढ़ा गया मौसम

लरज़ उठती ज़मीन रह-रह कर
जलजले-सा  हिला गया मौसम

यूँ   अधूरी   रही  उड़ान यहाँ
रौंद के  पर चला गया  मौसम

               कैलाश नीहारिका