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Thursday, 13 April 2023

किसके बिन

सूनी-सूनी रातें हैं खाली-से  दिन
 बिन मौसम के ही बरसे बादल रिमझिम

सबके हिस्से में कैसे आती होंगी
रोज़ सुनहरी किरणें या शबनम झिलमिल

आज हुलस खोकर लौटा लगता है वह
रेशा-रेशा बिखरा आख़िर किसके बिन

गिनते-गिनते सब सुर सरगम भूल गए
थाप बिना जो गूँजा उसकी शिद्दत सुन

अपने हिस्से आई धूप बहुत फीकी
सुर्ख-भुने लम्हे सब मिट्टी में शामिल

                                    कैलाश नीहारिका


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