Wednesday, 13 January 2021

कौशल

उन सबके पास 

अपने-अपने प्याले हैं

शायद भरे हैं 

किसी के हाथ में थमा 

किसी के अधरों से सटा 

और किसी का मेज़ पर 

धरा है ढका ।

किसी-किसी के होंठों के कोनों से  

रिसती बारीक धार 

चुगली-सी करती है कि 

 पीना नहीं आता उनको। 

जिनके होंठों से कभी नहीं रिसता तरल 

वे पीने में पारंगत हैं 

या शायद उनका प्याला ही खाली हो ! 

जो भी हो 

यह निजता का मुद्दा है । 

थामा है कौशल से मैंने अपना प्याला 

अधरों से सटा रखा है 

रिसता नहीं तरल 

सोचते होंगे वे -- आता है इसे पीना 

 या खाली भी हो सकता है प्याला ! 

                 - कैलाश नीहारिका

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