मुझे समझाया गुरु ने
जिल्द पर मत जाना
वह बताती नहीं मजमून भीतर का
उन्हें मत सुनना जो कहें --
' हम तो वे हैं जो
मजमून भाँप लेते हैं लिफाफा देखकर '
जिल्द पर ही नहीं
पृष्ठों पर भी मत जाना
और मत जाना
पृष्ठों पर लिखी पंक्तियों के मात्र पठन-पाठन पर
पर्त दर पर्त वहाँ अर्थों के पट खुलते हैं
जो तय करते हैं राह ।
मैं अचम्भित रही
जिल्द नहीं, पृष्ठ नहीं
पृष्ठों पर सजी पंक्तियाँ भी नहीं
यह कैसा शब्द-भेदन है, जो कहीं और है !
मुस्कुराते हैं गुरु --
जो पुस्तक से शुरू होकर
ख़त्म हो जाए पुस्तक पर
वह जिज्ञासा नहीं ।
कहा कुछ और भी
कि ये विज्ञान को गाते जुगनू
रोशनी के महल तक जाते नहीं
बहुत भ्रामक हैं वे
चाँद-सूरज की बातें करते बहुधा
उन्हीं राहों को काट देते हैं
जो रोशन हैं सदा ।
जो रोशन हैं सदा ।
कैलाश नीहारिका
सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 08 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद आपका।
Deleteसार्थक ... किताबो के बाहर ही है जो सत्य है ... उसे शब्दों से परे देखना होता है ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजी बिल्कुल। सम्मति के लिए आभार।
Deleteएक बहुत सशक्त रचना |
ReplyDeleteधन्यवाद आलोक जी।
ReplyDeleteशानदार वजनदार
ReplyDeleteस्वरांजलि satishrohatgipoetry
🤝🙏
Deleteजिल्द पर ही नहीं
ReplyDeleteपृष्ठों पर भी मत जाना
और मत जाना
पृष्ठों पर लिखी पंक्तियों के पठन पर भी
पर्त दर पर्त वहाँ अर्थों के पट खुलते हैं
जो तय करते हैं राह ।
बेहतरीन दर्शन का सृजन हुआ है आपकी कलम से। साधुवाद व शुभकामनाएं आदरणीया नीहारिका जी।
आभार आपका सृजन को सम्मानित करने के लिए।
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