212 212 1222
आज भी हरसिंगार बाक़ी है
मौसमों में बहार बाक़ी है
आसमां तो बहुत क़रीबी है
पर ज़मीं का दुलार बाक़ी है
आज भी हरसिंगार बाक़ी है
मौसमों में बहार बाक़ी है
आसमां तो बहुत क़रीबी है
पर ज़मीं का दुलार बाक़ी है
सुरमई शाम किस क़दर तन्हा
आज फिर इंतज़ार बाक़ी है
फासलों में महज़ उदासी है
चाहतों का गुबार बाक़ी है
दिन ढले लोग लौट जाएंगे
साँझ इक राज़दार बाक़ी है
आज फिर इंतज़ार बाक़ी है
फासलों में महज़ उदासी है
चाहतों का गुबार बाक़ी है
दिन ढले लोग लौट जाएंगे
साँझ इक राज़दार बाक़ी है
साथ तू है ख़ुशी मयस्सर है
क्या कहीं इंतज़ार बाक़ी है
जोश परवाज़ का बनाए रख
नगम-ए-शहसवार बाक़ी है
कैलाश नीहारिका
( गगनांचल में प्रकाशित )
क्या कहीं इंतज़ार बाक़ी है
जोश परवाज़ का बनाए रख
नगम-ए-शहसवार बाक़ी है
कैलाश नीहारिका
( गगनांचल में प्रकाशित )
सुन्दर सृजन,सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें, आभारी होऊंगा .