2122 12 1222
सब्ज़ पत्ते गिरा गया मौसम
क्या पहेली बुझा गया मौसम
राह तकते खड़े रहे सपने
फिर मिलेंगे सुना गया मौसम
आरजू थी सदा वफ़ा करते
जुस्तजू-भर सिखा गया मौसम
दर्द बोये गये बहुत गहरे
फिर बरस के रुला गया मौसम
कब कहाँ कौन साथ छोड़ चले
पाठ विरही पढ़ा गया मौसम
लरज़ उठती ज़मीन रह-रह कर
जलजले-सा हिला गया मौसम
यूँ अधूरी रही उड़ान यहाँ
रौंद के पर चला गया मौसम
कैलाश नीहारिका
यूँ अधूरी रही उड़ान यहाँ
रौंद के पर चला गया मौसम
कैलाश नीहारिका
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