कविता एक ऐसी उपज है जिसकी जड़ें गहरी हैं . कविता के शब्दों से ही अर्थ नहीं झरते,उसके शब्द जिस 'स्पेस' से आवरण युक्त होते हैं, वह 'स्पेस' भी कविता कहता है.कविता को समझने के लिए उसके 'स्पेस ' का मर्म समझना ज़रूरी है . मर्मज्ञ ही हो सकता है कविता का पाठक ! कविता एक दर्द है / हम जो हैं / उससे जुदा होने का दर्द /
कविता है _
कैलाश नीहारिका
Thursday 12 July 2018
मृग मरीचिका
उस सूखती नदी के रेतीले तट पर
नहीं डूबी मैं
रेत में भला कोई डूबता है
फिर भी डूब ही तो गई
उस घनी चमकती रेत से उपजी
मृग मरीचिका में !
सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया जोशी जी !
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