Monday, 9 July 2018

राग बोती ग़ज़ल

  2122 2222 12

सुर्ख़ आँखों से जब रोती ग़ज़ल
राग सब ऋतुओं में बोती ग़ज़ल

जब पसीना बहते-बहते थमे
छाँव देती खुशबू होती ग़ज़ल

रीत जाते यूँ ही बादल घने
आह-भर खालीपन ढोती ग़ज़ल

सोख  लेती बहकी बेताबियाँ
अश्क़-भर हँसके जब रोती ग़ज़ल

रात ने  जाने क्या उससे कहा
रात-भर काजल-सा धोती ग़ज़ल

रोज़नामें में लिखते फब्तियाँ
यह न होती तो वह होती ग़ज़ल
                     
                                    कैलाश नीहारिका

2 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन पर मेरी ग़ज़ल का लिंक देने के लिए बहुत शुक्रिया शिवम् जी ।

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  2. बहुत शुक्रिया जोशी जी ।

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