लिख ही डालूँ इक बहर में ज़िन्दगी मुमकिन नहीं
कैसे गाऊं एक सुर में तल्खियाँ मुमकिन नहीं
करके देखो तुम उजालों से कभी कुछ गुफ़्तगू
रच दो बस अल्फ़ाज़ से उजली सहर मुमकिन नहीं
जब भी फसलें झेलती हैं रात पाले का कहर
कोई सूरज धूप ओढ़ा दे तभी मुमकिन नहीं
टुकड़ा टुकड़ा काट के फैंका गया कुछ इस तरह
सारे सच को जोड़के वह शक्ल दूँ मुमकिन नहीं
मैं तुम्हारे जश्न में आई भरी मुट्ठी लिए
जाते-जाते पोटली-भर दर्द लूँ मुमकिन नहीं
तुम-सा तन्हा कौन है ये सोचती हूँ आह भर
ऐसी तन्हाई जिसे कुछ सौंपना मुमकिन नहीं
222 2212 2212 2212
कैलाश नीहारिका
कैसे गाऊं एक सुर में तल्खियाँ मुमकिन नहीं
करके देखो तुम उजालों से कभी कुछ गुफ़्तगू
रच दो बस अल्फ़ाज़ से उजली सहर मुमकिन नहीं
जब भी फसलें झेलती हैं रात पाले का कहर
कोई सूरज धूप ओढ़ा दे तभी मुमकिन नहीं
टुकड़ा टुकड़ा काट के फैंका गया कुछ इस तरह
सारे सच को जोड़के वह शक्ल दूँ मुमकिन नहीं
मैं तुम्हारे जश्न में आई भरी मुट्ठी लिए
जाते-जाते पोटली-भर दर्द लूँ मुमकिन नहीं
तुम-सा तन्हा कौन है ये सोचती हूँ आह भर
ऐसी तन्हाई जिसे कुछ सौंपना मुमकिन नहीं
222 2212 2212 2212
कैलाश नीहारिका
वाह
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