Thursday, 3 May 2018

बेहुनर हाथ

बेहुनर हाथ किसी काबिल बना दूँ तो चलूँ
आस की डोर  हथेली में थमा दूँ तो चलूँ

मोड़ दर मोड़ मिलेंगे राह भूले चेहरे 
एक मुस्कान निगाहों में बसा लूँ तो चलूँ                 

रात-भर नींद करेगी बेवफ़ा-सी बतकही 
जश्न  की साँझ अँधेरों से बचा लूँ तो चलूँ
                        
पाँव नाज़ुक उलझ गए कंकरीली  राह से 
अजनबी मोड़ गले तुमको लगा लूँ तो चलूँ 

डगर को छोड़ कहाँ जाऊँ भला तुम ही कहो
चाँद की चाह समन्दर को बतादूँ तो चलूँ

रोज़ क्या साथ रहेंगे फुरसतों के सिलसिले
धूल में जज़्ब  हुए लम्हे  उठा लूँ तो चलूँ

    2122  222  2122  212   
                     कैलाश नीहारिका

18 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, खाना खजाना - ब्लॉग बुलेटिन स्टाइल “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. अधिक साथियों तक पोस्ट पहुँचाने के लिए आपका बहुत शुक्रिया !

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 06 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आभारी हूँ कि आपने अपने ब्लॉग में मेरी ग़ज़ल को स्थान देकर अधिकाधिक पाठकों तक उसे पहुँचाया।

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  3. रात-भर नींद करेगी बेवफ़ा-सी बतकही
    जश्न की साँझ अँधेरों से बचा लूँ तो चलूँ....वाह

    कितने गहरे भाव है आपकी इस रचना में.

    खैर 

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    1. आपके भावपूर्ण वैचारिक साथ के लिए आभारी हूँ रोहिताश जी.

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  4. बहुत सुन्दर...
    वाह!!!

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    1. बहुत आभार, रचना को आपका पारखी साथ मिला सुधा जी।

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  5. वाह्ह...अति सुंदर👌

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    1. अभिभूत हूँ, रचनात्मक साथ बनाए रखें श्वेता जी ।

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  6. thanks for the appreciation and concern you showed towards my gazals.I will pursue your offer.thanks.

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  7. शुक्रिया ध्रुव जी !

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