बेहुनर हाथ किसी काबिल बना दूँ तो चलूँ
आस की डोर हथेली में थमा दूँ तो चलूँ
मोड़ दर मोड़ मिलेंगे राह भूले चेहरे
एक मुस्कान निगाहों में बसा लूँ तो चलूँ
रात-भर नींद करेगी बेवफ़ा-सी बतकही
जश्न की साँझ अँधेरों से बचा लूँ तो चलूँ
पाँव नाज़ुक उलझ गए कंकरीली राह से
अजनबी मोड़ गले तुमको लगा लूँ तो चलूँ
डगर को छोड़ कहाँ जाऊँ भला तुम ही कहो
चाँद की चाह समन्दर को बतादूँ तो चलूँ
रोज़ क्या साथ रहेंगे फुरसतों के सिलसिले
धूल में जज़्ब हुए लम्हे उठा लूँ तो चलूँ
2122 222 2122 212
कैलाश नीहारिका
आस की डोर हथेली में थमा दूँ तो चलूँ
मोड़ दर मोड़ मिलेंगे राह भूले चेहरे
एक मुस्कान निगाहों में बसा लूँ तो चलूँ
रात-भर नींद करेगी बेवफ़ा-सी बतकही
जश्न की साँझ अँधेरों से बचा लूँ तो चलूँ
पाँव नाज़ुक उलझ गए कंकरीली राह से
अजनबी मोड़ गले तुमको लगा लूँ तो चलूँ
डगर को छोड़ कहाँ जाऊँ भला तुम ही कहो
चाँद की चाह समन्दर को बतादूँ तो चलूँ
रोज़ क्या साथ रहेंगे फुरसतों के सिलसिले
धूल में जज़्ब हुए लम्हे उठा लूँ तो चलूँ
2122 222 2122 212
कैलाश नीहारिका
सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया जी !
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, खाना खजाना - ब्लॉग बुलेटिन स्टाइल “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteअधिक साथियों तक पोस्ट पहुँचाने के लिए आपका बहुत शुक्रिया !
Deleteउम्दा
ReplyDeleteशुक्रिया जी !
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 06 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभारी हूँ कि आपने अपने ब्लॉग में मेरी ग़ज़ल को स्थान देकर अधिकाधिक पाठकों तक उसे पहुँचाया।
Deleteरात-भर नींद करेगी बेवफ़ा-सी बतकही
ReplyDeleteजश्न की साँझ अँधेरों से बचा लूँ तो चलूँ....वाह
कितने गहरे भाव है आपकी इस रचना में.
खैर
आपके भावपूर्ण वैचारिक साथ के लिए आभारी हूँ रोहिताश जी.
Deleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत आभार, रचना को आपका पारखी साथ मिला सुधा जी।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया जी !
Deleteवाह्ह...अति सुंदर👌
ReplyDeleteअभिभूत हूँ, रचनात्मक साथ बनाए रखें श्वेता जी ।
Deletethanks for the appreciation and concern you showed towards my gazals.I will pursue your offer.thanks.
ReplyDeleteशुक्रिया ध्रुव जी !
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