Friday, 2 March 2018

खाये-पीये और अघाए

खाये-पीये और अघाये यार बहुत
गुप-चुप दिखते धार लगे औजार बहुत
 
लम्बी-चौड़ी घोर सियासी महफ़िल में
कैसे कह दूँ जीवन के दिन चार बहुत

चाराजोई ही कर लेते हाकिम से
हम जैसे जो मिल सकते खुद्दार बहुत

आँसू पी जाते बिन बोले चुपके-से 
यूँ हँसते दिखते रहते हुशियार बहुत

किस्सागोई तो अब मुश्किल बात नहीं
दायें-बायें रोज़ दिखें  किरदार बहुत

मौके के मुद्दों पर हम सब चुप रहते
मिलते-जुलते साजिश को तैयार बहुत
 
दिनभर खटते रहकर उसने क्या जोड़ा
माना खाते खोल रही सरकार बहुत

तिनका भी तोड़े न मुसाहिब पूरा दिन 
छुट्टी करने को मिलते इतवार बहुत





           2222   222  2222
                                         कैलाश नीहारिका

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