ताकते नूर खिलते मुखड़ों का
कौन बनता मसीहा लिथड़ों का
जब चमकते मिलें छुरियाँ-काँटे
कौन मातम मनाए बिछुड़ों का
एक गुलज़ार-सा बंगला देखा
और देखा तमाशा उजड़ों का
वे भरे पेट चुप मुस्कान लिए
खून मिक़दार जाँचें निचुड़ों का
यह लिबासों लदा संसार भला
क्या करें ज़िक्र अब उन चिथड़ों का
बस नुमाइश भरी गहमा-गहमी
फ़ैसला कौन बाँचे बिगड़ों का
तल्खियां बढ़ गईं जब दामन में
पूछने हाल निकले पिछड़ों का
-- कैलाश नीहारिका
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