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Monday, 7 September 2020

जिल्द पर मत जाना

मुझे समझाया गुरु ने 
जिल्द पर मत जाना 
वह बताती नहीं मजमून भीतर का 
उन्हें मत सुनना जो कहें --
' हम तो वे हैं जो 
मजमून भाँप लेते हैं लिफाफा देखकर '

जिल्द पर ही नहीं 
पृष्ठों पर भी मत जाना 
और मत जाना 
पृष्ठों पर लिखी पंक्तियों के मात्र पठन-पाठन पर
पर्त दर पर्त वहाँ अर्थों के पट खुलते हैं 
जो तय करते हैं राह । 

मैं अचम्भित रही 
जिल्द नहीं, पृष्ठ नहीं 
पृष्ठों पर सजी पंक्तियाँ भी नहीं 
यह कैसा शब्द-भेदन है, जो कहीं और है !

मुस्कुराते हैं गुरु --
जो पुस्तक से शुरू होकर 
ख़त्म हो जाए पुस्तक पर 
वह जिज्ञासा नहीं । 

कहा कुछ और भी 
कि ये विज्ञान को गाते जुगनू 
रोशनी के महल तक जाते नहीं 
बहुत भ्रामक हैं वे 
चाँद-सूरज की बातें करते बहुधा
उन्हीं राहों को काट देते हैं
जो रोशन हैं सदा । 

                        कैलाश नीहारिका 


13 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 08 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सार्थक ... किताबो के बाहर ही है जो सत्य है ... उसे शब्दों से परे देखना होता है ...

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  3. Replies
    1. जी बिल्कुल। सम्मति के लिए आभार।

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  4. एक बहुत सशक्त रचना |

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  5. शानदार वजनदार



    स्वरांजलि satishrohatgipoetry

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  6. जिल्द पर ही नहीं
    पृष्ठों पर भी मत जाना
    और मत जाना
    पृष्ठों पर लिखी पंक्तियों के पठन पर भी
    पर्त दर पर्त वहाँ अर्थों के पट खुलते हैं
    जो तय करते हैं राह ।
    बेहतरीन दर्शन का सृजन हुआ है आपकी कलम से। साधुवाद व शुभकामनाएं आदरणीया नीहारिका जी।

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  7. आभार आपका सृजन को सम्मानित करने के लिए।

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