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Monday, 7 September 2020

जिल्द पर मत जाना

मुझे समझाया गुरु ने 
जिल्द पर मत जाना 
वह बताती नहीं मजमून भीतर का 
उन्हें मत सुनना जो कहें --
' हम तो वे हैं जो 
मजमून भाँप लेते हैं लिफाफा देखकर '

जिल्द पर ही नहीं 
पृष्ठों पर भी मत जाना 
और मत जाना 
पृष्ठों पर लिखी पंक्तियों के मात्र पठन-पाठन पर
पर्त दर पर्त वहाँ अर्थों के पट खुलते हैं 
जो तय करते हैं राह । 

मैं अचम्भित रही 
जिल्द नहीं, पृष्ठ नहीं 
पृष्ठों पर सजी पंक्तियाँ भी नहीं 
यह कैसा शब्द-भेदन है, जो कहीं और है !

मुस्कुराते हैं गुरु --
जो पुस्तक से शुरू होकर 
ख़त्म हो जाए पुस्तक पर 
वह जिज्ञासा नहीं । 

कहा कुछ और भी 
कि ये विज्ञान को गाते जुगनू 
रोशनी के महल तक जाते नहीं 
बहुत भ्रामक हैं वे 
चाँद-सूरज की बातें करते बहुधा
उन्हीं राहों को काट देते हैं
जो रोशन हैं सदा । 

                        कैलाश नीहारिका 


Sunday, 6 September 2020

पुलक भरी आस


समझने लगी हूँ अब
जो उड़ गया वह पक्षी था
जो बंद रहा मुट्ठी में वह दाना। 
 
चढ़ते-चढ़ते जो लौटने लगी
वह धूप थी
जो दर्ज हो गया कहीं, दिनांक था।

जो साथ रहा 'मैं ' था
जो अलग हुआ ' तुम '
जो सध न सका, 'हम ' था 
वह लापता था जो अंतरलीन था।

बस निकल लूँ इस अँधेरे से
कन्दरा के पार है प्रकाश
तन गई हैं मुट्ठियाँ
मुट्ठियों में धड़कती है
पुलक भरी आस !