पायल, बिन्दी, कँगना से
आगे निकल चुकी लड़की
पीछे मुड़कर भी देखना
चीन्हना उस साम्राज्य को
जहाँ गृह-कारा में बंद कई ज़िन्दा अस्तित्व और
चीन्हना उस साम्राज्य को
जहाँ गृह-कारा में बंद कई ज़िन्दा अस्तित्व और
विवशता के रुदन में दब गए मनभावन गीत
अजगरी जकड़न की वेदना से त्रस्त हैं !
अजगरी जकड़न की वेदना से त्रस्त हैं !
पकड़ उंगली तुम्हारी
कुछ दबे गीतों के सुर भी दूर तक साथ चल देंगे
जो अभी असमंजस में हैं
होंठों की देहरी के भीतर !
होंठों की देहरी के भीतर !
तुम देखना मुड़कर
कि अवरुद्ध साँसों को कुछ साफ़ हवा मिल सके
कि सुन्न पंखों में जागें स्पन्दन
कि फैसलों के पीछे हों कई पुख़्ता कदम
कि शोर की जगह संगीत ले !
दोहराऊँगी आह्वान कि
दोहराऊँगी आह्वान कि
बेगार मत ढोना
किसी गन्तव्यहीन यात्रा की
किसी गन्तव्यहीन यात्रा की
बहुत-से पिंजरे हटाने हैं तुम्हें
जिनसे तुम मुक्त हो !मैं मिलूँगी तुम्हें प्रतीक्षारत
इसी मोड़ पर
हठी गान्धारी की आँखों पर से
अनदिखी पट्टियाँ खोलते
अनदिखी पट्टियाँ खोलते
दुखती उँगलियों से !
कैलाश नीहारिका
वाह
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