रूबरू हो कोई पर साथ न हो
बंद खामोशी हो कुछ बात न हो
वस्ल की शामें सब तन्हा- तन्हा
अश्क घिर आएँ पर बरसात न हो
उस सहारे की भी तारीफ़ करूँ
सिर कभी कंधा या फिर हाथ न हो
ख़ास अफ़साना भी बेजान लगे
बेसबब जज़्बे की जो बात न हो
ज़िन्दगी जैसे उलझी साँस कहीं
इक विरासत हो जो सौगात न हो
कैलाश नीहारिका
(नया ज्ञानोदय के उत्सव विशेषांक , अक्तूबर,2014 में प्रकाशित )
बंद खामोशी हो कुछ बात न हो
वस्ल की शामें सब तन्हा- तन्हा
अश्क घिर आएँ पर बरसात न हो
उस सहारे की भी तारीफ़ करूँ
सिर कभी कंधा या फिर हाथ न हो
ख़ास अफ़साना भी बेजान लगे
बेसबब जज़्बे की जो बात न हो
ज़िन्दगी जैसे उलझी साँस कहीं
इक विरासत हो जो सौगात न हो
कैलाश नीहारिका
(नया ज्ञानोदय के उत्सव विशेषांक , अक्तूबर,2014 में प्रकाशित )
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