पायदानों पर रुकी अटकी ग़ज़ल
शोख कंधों पर झुकी लटकी ग़ज़ल
तुम हवाले दे रहे हो खूब पर
आप अपनी बात से हटती ग़ज़ल
रोज़ सपने टालती-सी नींद है
जागने के पाठ को रटती ग़ज़ल
कुन्द होकर मिट गईं जब तल्खियाँ
ज़िन्दगी की सान क्या चढ़ती ग़ज़ल
आज तक हासिल हुईं रुसवाइयाँ
किसलिए दिन रात यूँ खटती ग़ज़ल
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