गुरु ने समझाया --
किसी पर रीझकर मत गढ़ना
कर्म बन्धन नये
मेरी उलझन थी कि
भरी जो रीझ भीतर कूट-कूट कर
उसका क्या !
विरक्त पीड़ा से भर कह उठे वे --
तुम नहीं चाहते पुल से नदी को पार करना
मोहभंग की नदी में उतरकर ही मानोगे !
--कैलाश नीहारिका
कविता एक ऐसी उपज है जिसकी जड़ें गहरी हैं . कविता के शब्दों से ही अर्थ नहीं झरते,उसके शब्द जिस 'स्पेस' से आवरण युक्त होते हैं, वह 'स्पेस' भी कविता कहता है.कविता को समझने के लिए उसके 'स्पेस ' का मर्म समझना ज़रूरी है . मर्मज्ञ ही हो सकता है कविता का पाठक ! कविता एक दर्द है / हम जो हैं / उससे जुदा होने का दर्द / कविता है _ कैलाश नीहारिका
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Wednesday, 19 October 2022
नदी को पार करना
कोई बात करो
कोई बात करो
जो मरहम हो
अनदिखे ज़ख्मों के दौर में ।
कोई बात करो
जो आस किरण हो
अन्धे न्याय के दौर में !
कोई बात करो
जो थाम ले कसकर
निर्मम अलगाव के दौर में।
कोई बात करो
कि मिल बैठें
इस भाग-दौड़ के दौर में।
- कैलाश नीहारिका
सौदागर नहीं थे
सौदाई बने जो सौदागर नहीं थे
शैदाई सही वे पेशावर नहीं थे
जो सच में सिरजते थे उम्दा विरासत
वे बेघर मुसाफिर जोरावर नहीं थे
मामूली रहा जिनका होना यहाँ पर
वे मज़बूर सनकी कद्दावर नहीं थे
उन्हें भी किसी से मोहब्बत हुई थी
वे अपनी बला के चारागर नहीं थे
कोई क्या समझता नादानी भरी जिद
वे जश्ने चमन के दीदावर नहीं थे
-- कैलाश नीहारिका