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Sunday 24 July 2022

पेंच

 मैंने सदा चाहा 

तुम्हारा प्रेमपूर्ण होना 

जबकि मेरा प्रेमपूर्ण होना 

दशकों से छीज रहा है 

बस 

यहीं सारा पेंच अड़ा है ।

मैं का विसर्जन करते हुए 

मैं पुनर्नवा होने की 

कोशिश में हूँ। 

3 comments:

  1. दूसरे का " मैं " भी तो विसर्जित हो ।

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    1. दूसरे को सुधारने की चाहत निरर्थक है . अपना ' मैं ' विसर्जन करने का अर्थ आत्म सम्मान से रहित होना नहीं है .

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  2. धन्यवाद जी.आपके ब्लॉग की प्रस्तुतियों के पीछे आपका श्रम झलकता है . अभिनन्दन .

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