मैंने सदा चाहा
तुम्हारा प्रेमपूर्ण होना
जबकि मेरा प्रेमपूर्ण होना
दशकों से छीज रहा है
बस
यहीं सारा पेंच अड़ा है ।
मैं का विसर्जन करते हुए
मैं पुनर्नवा होने की
कोशिश में हूँ।
कविता एक ऐसी उपज है जिसकी जड़ें गहरी हैं . कविता के शब्दों से ही अर्थ नहीं झरते,उसके शब्द जिस 'स्पेस' से आवरण युक्त होते हैं, वह 'स्पेस' भी कविता कहता है.कविता को समझने के लिए उसके 'स्पेस ' का मर्म समझना ज़रूरी है . मर्मज्ञ ही हो सकता है कविता का पाठक ! कविता एक दर्द है / हम जो हैं / उससे जुदा होने का दर्द / कविता है _ कैलाश नीहारिका
मैंने सदा चाहा
तुम्हारा प्रेमपूर्ण होना
जबकि मेरा प्रेमपूर्ण होना
दशकों से छीज रहा है
बस
यहीं सारा पेंच अड़ा है ।
मैं का विसर्जन करते हुए
मैं पुनर्नवा होने की
कोशिश में हूँ।
शब्दों में
कहाँ समाती है
कविता !
झरते -झरते
निथर जाओगे
एक दिन !
हाशिये से
ख़ारिज होंगे
बेज़ुबान लोग
- कैलाश नीहारिका