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Wednesday, 6 December 2017

निशाने पे


जाने कब कौन हो निशाने पे
किसको राहत मिली ज़माने से

वे चुप थे देर तक बिना सोचे
जिसने सोचा कहा ज़माने से

बनके अहसास साथ जो रहता
उसको मुद्दत लगे भुलाने में 
 
हमने चाहा कहीं  ख़ुशी बोएं
अरसा बीता शिला हटाने में
 
जिसने पाई खुशी गले मिलकर
उसकी चाहत दिखी निशाने पे

जिसके दिन-रात जगमगाते थे 
उसका आसन हिला हिलाने से 
 
तेरा होना जिसे समझ आया        
कब वो तन्हा रहा ज़माने में

                 कैलाश नीहारिका




3 comments:

  1. तेरा होना जिसे समझ आया
    कब वो तन्हा रहा ज़माने में

    वाह।

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  2. वाह
    बहुत सुंदर
    बधाई

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  3. शुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी. स्नेह बनाए रखें !

    धन्यवाद ज्योति खरे जी.आगे भी आपकी प्रतिक्रियाओं कि प्रतीक्षा रहेगी.

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