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Friday, 5 June 2015

बेसबब कहा होता

       122  212  1222

दरो-दीवार  सब  ढहा  होता 
कभी तो आसमां जिया होता

सँभल के यूँ नपा-तुला कहना
कभी कुछ  बेसबब कहा होता 

कहा  हँसते हुए  सरे-ख़ल्क़त 
नज़र-भर रीझ के  कहा होता

दहकती आग की तपिश झेली
घुमड़ता-सा धुआँ  सहा  होता
 
नयन की ढाल से लुढ़कता-सा
लरजता अश्क़ ही बहा होता
 
अभी ख़ारिज सही फ़िदा होना
वह कभी  मुंतज़िर  रहा  होता
 
छुपा  ही वो रहा  खुदाई में
कभी तो रूबरू  रहा होता

                 कैलाश नीहारिका  

2 comments:

  1. छिपा ही वो रहा खुदाई में
    कभी तो रूबरू रहा होता
    बहुत खूब आदरणीया

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