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Thursday, 8 March 2012

हरसिंगार बाक़ी है

     212  212  1222

आज भी हरसिंगार बाक़ी है
मौसमों में बहार बाक़ी है

आसमां तो बहुत क़रीबी है
पर ज़मीं का दुलार बाक़ी है
 
सुरमई शाम किस क़दर तन्हा
आज फिर  इंतज़ार बाक़ी  है

फासलों में महज़ उदासी है
चाहतों का  गुबार बाक़ी है

दिन ढले लोग लौट जाएंगे
साँझ इक राज़दार बाक़ी है
 
साथ तू  है ख़ुशी मयस्सर है  
 क्या कहीं इंतज़ार  बाक़ी है

जोश परवाज़ का बनाए रख
नगम-ए-शहसवार  बाक़ी है


                   कैलाश नीहारिका 

              ( गगनांचल में प्रकाशित )

1 comment:

  1. सुन्दर सृजन,सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

    कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें, आभारी होऊंगा .

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