Pages

Wednesday, 11 May 2011

हिला गया मौसम


     2122 12 1222

सब्ज़   पत्ते  गिरा  गया  मौसम
क्या पहेली  बुझा  गया मौसम

राह  तकते   खड़े  रहे सपने
फिर मिलेंगे सुना गया  मौसम

आरजू थी सदा वफ़ा करते
जुस्तजू-भर सिखा गया मौसम

दर्द   बोये   गये   बहुत गहरे
फिर बरस के रुला गया मौसम

कब कहाँ कौन साथ छोड़ चले
पाठ विरही पढ़ा गया मौसम

लरज़ उठती ज़मीन रह-रह कर
जलजले-सा  हिला गया मौसम

यूँ   अधूरी   रही  उड़ान यहाँ
रौंद के  पर चला गया  मौसम

               कैलाश नीहारिका 

No comments:

Post a Comment