कविता लिखना
जूता गाँठना नहीं है कि
जिसकी आवश्यकता और उपयोगिता सामने हो .
कविता लिखना उच्छवास छोड़ने से पहले
उसे लय देना है.
उच्छवास में भले ही कुछ भी सहेजा गया हो ---
मूलभूत आवश्यकताओं से लेकर
अनदिखी प्रबल एषणाओं तक !
पर कविता में रची-बसी वह लय
किसी प्रज्ञा की गहराई से निकल
पाठक की प्रज्ञा को गले लगाती है
भरपूर अपनापे से !
- कैलाश नीहारिका